किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में राजा मान सिंग तोमर द्वारा किया गया था।

ग्वालियर के किले को हिंद के किलों का मोती भी कहा जाता है।

ग्वालियर के किले के परिसर में एक तामचीनी वृक्ष भी है जिसे महान संगीतकार तानसेन ने लगाया था।

कोहिनुर हीरे के आखिरी सरंक्षक ग्वालियर के ही राजा थे।

ग्वालियर किला झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान का भी गवाह रहा है।

किले की ऊंचाई 35 फीट है। शहर के कोने-कोने से इस क़िले को देखा जा सकता है। यह मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के श्रेष्ठ उदाहरणों में से एक है।

ग्वालियर किले के स्तंभों पर ड्रैगन की नक्काशियां हैं जो उस समय के भारत चीन संबंधों का प्रमाण हैं। 

लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है।

इसके अलावा आप यहां तेली का मंदिर,10वीं सदी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर,भीम सिंह की छतरी और सिंधिया स्कूल देख सकते हैं।

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