Cheetah Reintroduction in India सबसे पहले हम जानते हैं कि ये टॉपिक इतना क्यों सर्च किया जा रहा है अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उनके जन्मदिवस पर 17 सितंबर को मध्यप्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में इंटरकॉन्टिनेंटल चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया है। जिसका उद्देश्य भारत में विलुप्त चीतों को दोबारा लाना है।
चीता (Cheetah) कौन हैं
चीता बिल्ली की सबसे पुरानी प्रजातियां में से एक है। इसके पूर्वजों को पांच मिलियन से अधिक वर्षों से मायोसीन युग में खोजा जा सकता है। ये दुनिया का सबसे तेज़ भूमि स्तनपायी है जो अफ्रीका और एशिया में रहता है। 1952 में विलुप्त घोषित होने के 70 साल बाद भारत में इस प्रजाति को फिर से लाया जा रहा है।

आइये जानते हैं अफ्रीकी चीता को, इसका वैज्ञानिक नाम ऐसिनोनिक्स जुबैटस है। इनकी त्वचा थोड़ी भूरी और सुनहरी होती है, जो एशियाई चीतों से मोटी होती है। एशियाई चीता की तुलना में उनके चेहरे पर अधिक धब्बे और रेखाएँ होती है। यह पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में हजारों की संख्या में पाया जाता है। IUCN की लाल सूची में से वल्नरेबल का दर्जा प्राप्त है। वहीं CITES की परिशिष्ट-1 के अंतर्गत आता है। वहीं वन्यजीव संरक्षण अधिनियम अनुसूचित दो के तहत संरक्षण प्राप्त है।
एशियाई चीता थोड़ा अलग होता है। इसका वैज्ञानिक नाम ऐसिनोनिक्स जुबेटस वेनेटिक्स है। ये अफ्रीकी चीतों से थोड़ा छोटा होता है। इनके पेट पर ज्यादा फर्क होने के साथ इसकी त्वचा हल्के पीले रंग की होती है। लेकिन वर्तमान में अभी ये केवल ईरान में बचा है, जिनकी संख्या 100 से कम है। इसके संरक्षण की बात करें तो IUCN रेड लिस्ट में इसे क्रिटिकली एन्डेन्जर्ड का दर्जा हासिल है। और CITES परिशिष्ट 1 तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम अनुसूचित दो के तहत इसे संरक्षण प्राप्त है।
भारत में चीता 1952 के बाद नहीं देखा गया। माना जाता है कि चीता वर्ष 1947 में भारत से विलुप्त हो गया था। कोरिया छत्तीसगढ़ के महाराजा रामानुजन प्रताप सिंह देव ने 1947 में भारत में दर्ज अंतिम तीन एशियाई चीतों का गोली मारकर शिकार किया। वर्ष 1952 में इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
Cheetah Reintroduction in India (चीता पुनर्वास परियोजना):
चीतों को भारत में वापिस लाने के लिए देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने 7 साल पहले ₹260,00,00,000 की चीता प्रजनन परियोजना तैयार की थी। भारत सरकार की योजना मध्यप्रदेश के ग्वालियर चंबल क्षेत्र के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को फिर से लाने की है। ये दुनिया की पहली अंतरमहाद्वीपीय चीता स्थानांतरण परियोजना है।
Cheetah Reintroduction in 7 points (चीता पुनर्वास परियोजना)
- 5 जनवरी‚ 2022 को केंद्रीय पर्यावरण‚ वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की 19वीं बैठक हुई।
- इस बैठक में भारत में चीता के पुनर्वास के लिए एक कार्ययोजना (Action Plan For Cheetah Reintroduction in India) जारी की गई।
- इस कार्ययोजना के तहत अगले 5 वर्षों की अवधि में देश के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में 50 चीते दूसरे देशों से ला कर रखे जाएंगे।
- भारत में एशियाटिक चीता (Asiatic cheetah) विलुप्त हो चुके थे। अब भारत सरकार फिर से चीता को भारत में लाने हेतु प्रतिबद्ध है। इसके लिए मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य (Kuno-Palpur Wildlife Sanctuary) को चुना गया है।
- दक्षिण अफ्रीका से नवंबर‚ 2021 में अफ्रीकी चीतों को ला कर मध्य प्रदेश स्थित कुनो पालपुर नेशनल पार्क में रखने की योजना थी‚ किन्तु महामारी (कोविड-19) के कारण यह योजना सफल नहीं हो सकी।
- भारत सरकार, ने Cheetah Relocation Project की घोषणा 2009 में की थी परंतु इस प्रोजेक्ट को मंजूरी सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में दी।
- कुनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य में चीता नामीबिया (अफ्रीका महाद्वीप) से आएंगे ऐसा बोला गया था जो की अब पूरा हो चूका है।

कुनो राष्ट्रीय उद्यान (kuno national park)
कुनो राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत के विंध्य पहाड़ियों में एक आभूषण की तरह है। यह एक दुर्लभ जंगल है, एक नखलिस्तान एक अन्यथा चट्टानी और क्षमाशील परिदृश्य के बीच बसा हुआ है। कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के मुरैना और श्योपुर जिले के बीच फैला हुआ है। 350 वर्ग किमी में फैले इस area को 1981 में Wildlife Sanctuary और 2018 में National Park घोषित किया गया था। यह स्थान प्राचीन किलों और संरचनाओं से भरा हुआ है, जिन्हें अब जंगल, “करधाई”, “खैर” और “सलाई” पेड़ों के प्रभुत्व वाली हरी-भरी वनस्पतियों द्वारा पुनः प्राप्त कर लिया गया है, एक अद्भुत दुनिया जिसमें समृद्ध विविधता और पंखों वाले जीवों का बहुत अधिक घनत्व है। स्वतंत्र रूप से घूमते और मांसाहारी और इन सबके बीच में प्रसिद्ध कुनो नदी बहती है, जिससे इस पार्क का नाम मिलता है।
इसमें चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा और अन्य जीवों की आबादी निवास करती है। वर्तमान में इस राष्ट्रीय उद्यान के भीतर तेंदुआ और धारीदार लकड़बग्घा बड़े मांसाहारी जीव है। ये एशियाई शेर यानी (पैंथेलोपर्सिका) का अंतिम निवास स्थान है। इसमें स्वदेशी वनस्पतियो एवं जीवों की विशाल आबादी और विविधता है। ये मध्य भारत के शुष्क पर्णपाती वन के एक विशिष्ट क्रॉस सेक्शन का प्रतिनिधित्व करता है।
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